भारत की खेती-किसानी में एक नई क्रांति की शुरुआत हो रही है, और इसका केंद्रबिंदु है ‘जीरो बजट प्राकृतिक खेती’ (Zero Budget Natural Farming)। उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों के लिए यह योजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य खेती की लागत को कम करना, उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाना और कृषि उत्पादों को प्राकृतिक व टिकाऊ बनाना है। यह योजना किसानों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने और स्वदेशी गायों के उत्पादों से खेती के साधन तैयार करने पर केंद्रित है।
क्या है जीरो बजट प्राकृतिक खेती?
जीरो बजट प्राकृतिक खेती एक ऐसी पद्धति है जो पूरी तरह से देसी गाय के उत्पादों पर आधारित है। इस खेती में किसान अपने खेत से ही सभी जरूरी सामग्री तैयार करता है। गाय का गोबर और गोमूत्र से बने विभिन्न जैविक घटक न केवल फसल को पोषण देते हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाते हैं।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती: क्या है?
शून्य बजट प्राकृतिक खेती का तात्पर्य ऐसी कृषि पद्धति से है, जिसमें किसान अपने खेत में उपयोग होने वाले सभी इनपुट जैसे बीज उपचार, उर्वरक और कीटनाशक, खुद ही तैयार करता है। इसके लिए गाय का गोबर और गोमूत्र मुख्य संसाधन होते हैं। इसमें बाजार से किसी भी प्रकार का रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक खरीदने की आवश्यकता नहीं होती।
आवश्यक चीजें
- बीजामृत: यह बीजों को सुरक्षित रखने और मजबूत बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- जीवामृत (द्रवजीवामृत और घनजीवामृत): यह एक तरह की जैविक खाद है, जो फसलों को पोषण देती है और उनकी अच्छी बढ़त में मदद करती है।
- नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र और अग्निास्त्र: यह प्राकृतिक कीटनाशक हैं, जो फसलों को कीड़ों और बीमारियों से बचाते हैं।
योजना का उद्देश्य
- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का कम उपयोग: खेतों में पर्यावरण और मृदा की गुणवत्ता को संरक्षित करना।
- कृषि लागत में कमी: बाजार पर निर्भरता खत्म कर किसानों के आर्थिक बोझ को कम करना।
- फसलों की उत्पादकता में वृद्धि: प्राकृतिक पोषण से अधिक पैदावार प्राप्त करना।
- उत्पाद की गुणवत्ता सुधार: जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए फसलों को स्वस्थ और पोषक बनाना।
योजना की विशेषताएं
- स्थानीय संसाधनों का उपयोग: किसानों को उनके खेत और पशुधन से ही सभी संसाधन प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
- पर्यावरण अनुकूल कृषि: प्राकृतिक तरीके से खेती कर मृदा और जल स्रोतों को प्रदूषण मुक्त बनाना।
- स्वदेशी गायों की भूमिका: गोबर और गोमूत्र का उपयोग खेत में जैविक उर्वरक और कीटनाशक तैयार करने के लिए किया जाता है।
सरकार का सहयोग
उत्तर प्रदेश सरकार किसानों को शून्य बजट प्राकृतिक खेती योजना के तहत प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान कर रही है। इसके अलावा, राज्य के कृषि विभाग द्वारा निःशुल्क कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन भी किया जा रहा है।
लाभ
- किसानों को खेती से जुड़ी सामग्री खरीदने के लिए 50% सब्सिडी दी जाती है।
- योजना के तहत मिलने वाली सामग्री:
- 200 लीटर क्षमता का बड़ा ड्रम
- 50 लीटर क्षमता का छोटा ड्रम
- 20 लीटर की बाल्टी
- जग, फिल्टर, पानी छिड़कने का स्प्रेयर
- ट्राइकोडर्मा, गोमूत्र, गोबर आदि जैविक सामग्री
- जैविक मल्च सामग्री जैसे पेड़ों की पत्तियां, खरपतवार बिछाने की सामग्री, बाजरा-ज्वार के पत्ते, मूंगफली के छिलके आदि को पंक्तियों के बीच नमी बनाए रखने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- अन्य उपलब्ध कचरे की सामग्री के लिए कुल लागत का 50% या अधिकतम 600 रुपये प्रति किसान डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के माध्यम से प्रदान किए जाएंगे।किसानों को प्रशिक्षण और फार्मर टूर के अवसर भी दिए जाएंगे।
- ग्राम पंचायत स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
कैसे शुरू करें?
यदि आप भी शून्य बजट प्राकृतिक खेती अपनाना चाहते हैं, तो अपने निकटतम कृषि विभाग कार्यालय से संपर्क करें। वहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर इस नई पद्धति को अपनाने का पहला कदम उठाया जा सकता है।
योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन प्रक्रिया
- सबसे पहले, अपने जिले के कृषि विभाग कार्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र जाना होगा।
- वहां से आवेदन फॉर्म प्राप्त करें।
- फॉर्म में मांगी गई सभी आवश्यक जानकारी को ध्यानपूर्वक भरें।
- फॉर्म के साथ मांगे गए जरूरी दस्तावेज संलग्न करें।
- पूर्ण रूप से भरा हुआ फॉर्म संबंधित कृषि विभाग कार्यालय में जमा करें।
निष्कर्ष
‘शून्य बजट प्राकृतिक खेती योजना’ केवल खेती की लागत को कम करने का ही उपाय नहीं है, बल्कि यह कृषि क्षेत्र में स्थिरता और टिकाऊपन को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। उत्तर प्रदेश सरकार की इस पहल से किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त होने का अवसर मिल रहा है।